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    महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन के अवसर पर एक खास लेख


    बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे।  (Just like a child's playground this world appears to me Every single night and day, this spectacle I see )

    मज़े जहां के अपनी  नज़र  में  ख़ाक  नहीं,  सिवा -ए -खून -ए -जिगर , सो  जिगर  में  ख़ाक  नहीं । (The happiness of the world is nothing for me for my heart is left with no feeling besides blood.)

    'इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के'

    दोस्तों ये शेर तो आपने भी कई बार बोला और सुना होगा. यह कुछ पंक्तियां हैं, जो हमारे जीवन में इस कदर शामिल हैं, जैसे यह हमारे जीवन का हिस्सा हों. आज हम आपको बताने जा रहे हैं करोड़ों दिलों के पसंदीदा शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में. दरअसल आज शेर-ओ-शायरी की दुनिया के बादशाह, उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर 'मिर्ज़ा ग़ालिब' का 220वां जन्मदिवस है. इस मौके पर मेरा एक खास लेख उनको समर्पित किया है. मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ ग़ालिब था. इस महान शायर का जन्म 27 दिसंबर 1796 में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था.

    ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है. ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है. उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला है. ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे. आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों के लिए याद किया जाता है. उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में यूं तो बहुत से अच्छे कवि-शायर हैं, लेकिन उनकी शैली सबसे निराली है-
    'हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और'

    उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आए थे. उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर में काम किया और अन्ततः आगरा में बस गए. ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में स्पष्टतः कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने 11 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी में गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था. इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है.

    कहते हैं 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था. वह विवाह के बाद से  दिल्ली आ गए थे जहाँ उनकी तमाम उम्र बीती. 15 फरवरी 1869 में महान प्रतिभा के धनी मिर्ज़ा ग़ालिब अंत समय में दिल्ली में रहते हुए हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले गए. लेकिन आज भी वह अपनी शेर ओ शायरी से लोगों के दिलों में जीवित हैं.

    सोर्सेज  : गूगल इमेजेज , विकिपीडिया 
    Link: https://en.wikipedia.org/wiki/Ghalib

                                                                          

                                                         - Santosh Kumar Yadav
                                                           27 Dec 2017

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