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    मजदूर मजबूर होता है, घरों से दूर होता है |

    मजदूर मजबूर होता है, घरों से  दूर होता है,
    रूखी सूखी खाके, आसमान के नीचे सोता है
    पर उसे नींद की गोलियां नहीं खानी पड़ती,
    थक कर चूर, पत्थर पर सिर रख कर सोता है।

         सड़क, ट्रेन, बस, जहाज, 
         घर, दवा और  अनाज,
         इन सब का निर्माता होता है ।
         जिस देश में होता है, 
         उसका भाग्य विधाता होता है,

    इमारतें बनाई तो हैं इससे जाती 
    इसके नहीं! है खुद के नामों से जानी जाती।।
    इसके सारे अरमानों को कुछ लोग फेल करते हैं
    इसके मेहनत के पैसों के साथ बिचौलिए खेल करते हैं

         दिहाड़ी पसीना सूखने से पहले क्यों? नहीं है पाता!
         जब हो जाए बीमार क्यों? इलाज नहीं हो पाता?
         क्यों रूखी सूखी खाता? खुले में ही सो जाता 
         मजदूर मजबूर होता है, घरों से दूर होता है,

    मजदूर मजबूर होता है, घरों से  दूर होता है,
    रूखी सूखी खाके, आसमान के नीचे सोता है

         जब यह करता अपना कर्म है ,
         टूटता क्यों नहीं यह क्रम है ?
         यह कर्तव्यों के प्रति होता गूढ़ (गंभीर) है 
         फिर भी नहीं पाता जीवन का गुड़(शक्कर-सुख) है ।।

    मानवता के लिए कुछ बदलाव जरूरी है,
    वरना विश्व गुरु की कल्पना सचमुच अधूरी है

         कुछ नर पिशाच बन जाते हैं चीता,(Tiger)
         बढ़ा देते है इनकी चिंता ( किनकी मजदूरों की),
         कर्ज में डुबो देते,
        अगर चुकता ना कर सके,
        सजा देते हैं इनकी चिता ( किनकी मजदूरों की)।

    दिया इन्हे महँगाई है,
    कठिन कर दी पढ़ाई है,
    मजदूर सोच कर घबराता है,
    कैसे कष्टों से नाता है,

      मजदूर मजबूर होता है, घरों से  दूर होता है,
      रूखी सूखी खाके, आसमान के नीचे सोता है

                           - © संतोष कुमार यादव (01-05-2020, 7:00 pm)



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