इंद्रजीत महिला महाविद्यालय के संरक्षक व हमारे नाना स्व० इंद्रजीत यादव जी के देहांत को १३ दिन हो गए, तेरहवीं पर भावभीनी श्रद्धांजलि !!
नमस्कार दोस्तों 🙏🙏🙏!!
मैं आप लोगों के बीच अपने नाना स्वर्गीय इंद्रजीत यादव (देहावसान 19-04-2020 💔💔💔) के 13 वीं के दिन उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं 🙏🙏🙏, उनके साथ शेयर किए हुए कुछ लम्हों के अनुभव को आप लोगों के बीच समर्पित करता हूं मेरा उनसे कैसा रिश्ता रहा, उनसे मेरा कैसा लगाव रहा, लोगों का उनके प्रति लगाव कैसा रहा, वह एक आम किसान के बेटे होते हुए कैसी 1 से ज्यादा लोगों के लिए रोजगार के अवसर अवसर पैदा किए ? कैसे वह किसान के बेटे से लेकर अपर मिडल क्लास फैमिली तक का सफर तय किए मैं अपने अनुभव को आप लोगों के बीच शेयर कर रहा हूं। आशा करता हू कोई त्रुटि हो जाये तो आप छमा कर देंगे!
मूलतः उनका जन्म आजमगढ़ जनपद के, सगड़ी तहसील के, रौनापार थाना क्षेत्र के देवरांचल में " माँ सरयू के पावन तट पर " आराजी देवारा नैनीजोर ( पकडिहवा ) नाम के एक गाँव में ढक्कू नामक विख्यात यदुवंशी के घर हुआ था । नाना जी के पिताजी एक बहन समेत कुल 8 भाई बहन थे। नाना जी खुद चार भाई जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं - श्री जीत्तन यादव, श्री नारसिंह यादव, स्व० श्री इंद्रजीत यादव और स्व० श्री झीनक यादव
जिनमें से श्री जीत्तन यादव और स्व0 इंद्रजीत यादव पेशे से लाइनमैन थे जो कहीं भी बिजली आपूर्ति बाधा आने पर त्वरित कार्रवाई कर सुदृढ़ बनाने का काम करते थे हालांकि अब यह लोग सेवानिवृत्त हो चुके थे, श्री नरसिंह यादव आजीवन कृषि कार्य में कार्यरत हैं।।
आइए विशेषकर श्री इंद्रजीत यादव के बारे में बात करते हैं जो कि समाज सेवा में काफी रूचि रखते थे जहां तक मुझे याद है बचपन में वह बिजली से सम्बंधित काम के लिए अपने टीम का गठन किए थे जिसमें वह अपने गांव के आसपास के लोगों को साथ लेकर कहीं भी ट्रांसमिशन लाइन हो उसके मरम्मत व विद्युत आपूर्ति से रिलेटेड कार्य के लिए जुट जाते थे
चाहे दिन हो रात हो जैसे ही सरकारी अफसरों से कोई आदेश आता ये अपने यहां से तुरंत अपनी टीम लेकर चले जाते थे हालांकि शुरुआत में उनकी टीम छोटी थी लेकिन उनके कार्य कुशलता और नॉलेज के हिसाब से उनको इलाहाबाद, सोनभद्र, आजमगढ़ आदि मंडल में इनके कार्य की निपुणता को देखते हुए बिजली विभाग के ऑफिसर इनको को ही प्रमुखता देते थे कोई भी काम हो वह इनको ही कॉल करके कहते थे कि यहां विद्युत आपूर्ति ठप है, यहां पर काम करना होगा, यहां पर नये विद्युतीकरण के लिए नए काम करना होगा, जैसे-जैसे इनकी टीम की डिमांड बढ़ती गई वैसे वैसे टीम की संख्या भी बढ़ती गई उनकी टीम में ना तो कोई जातिवाद था ना तो कोई संप्रदायवाद था इनके टीम में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध हर धर्म के लोग काम करते थे।।
उनकी टीम की विशेषता यह थी सभी लोग जहां भी काम करने जाते थे वही जाकर खाना बनाते एक दूसरे में मिलजुलकर खाते एक दूसरे के साथ मनोरंजन करते चाहे दिन हो या रात हो काम पर लग जाते और काम को त्वरित सुदृढ़ कर देते जिससे कि बिजली आपूर्ति शुरू हो सके या पहली बार किसी गांव तक किसी कॉलोनी तक विद्युतीकरण हो सके।
मुझे याद है बचपन में जब कभी हम लोग गर्मी की छुट्टियों में नाना के यहां जाते थे और जब कभी काम से फुर्सत पार कर नाना अपनी टीम लेकर ग्राम पकड़ीहवा आते थे, पूरा गांव एकत्रित हो जाता कि नाना जी कुछ लेकर आए होंगे सबके लिए, हां वह भी लोगों को मायूस नहीं करते थे वह केवल अपने घर के लिए ही नहीं पूरे गांव के लिए भी खाने पीने का सामान लेकर आते जैसे कि फल हो, मिठाई हो और गांव में जबरदस्त चौपाल लगाती थी लोग काफी आनंदित होते थे, बच्चे हो, बूढ़े हो उनके साथ के हों, उनकी टीम के मेंबर हो सब खुश होते थे,
वैसे तो बिजली विभाग काम से छुटकारा पाकर गांव आते थे लेकिन गांव आकर वह आराम नहीं करते थे किसी न किसी काम में लग जाते थे चाहे वह गांव का खुद का विद्युतीकरण हो चाहे, गांव में सड़के बनानी हो, चाहे किसी की छप्पर छानी हो, खेती करनी हो अपने खेतों की जुताई के साथ-साथ दूसरे के खेतों में जुताई करनी हों इन सब कामों में काफी दिलचस्पी लेते थे,
जिससे उनकी लोकप्रियता उनके आसपास के गांव तक थी, दूसरे गांव तक के लोग इनसे सहायता के लिए आते थे और गांव में एक अलग खुशी का माहौल होता था सबकी रुकी खेती जुदाई बुवाई हो जाती थी, इनके चंद दिनों गांव में होने के दौरान ही चाहे वह गन्ने की खेती हो चाहे वह गेहूं की खेती और धान की खेती हो सब की बुवाई तथा कटाई समय से हो जाया करती थी क्योंकि इन्हीं के पास कृषि कार्य हेतु इनके गांव में ट्रैक्टर था, ट्रैक्टर सामान्यतया विद्युत कार्यों के लिए उपयोग करते थे, शुरुआत में ट्रैक्टर ही इनका जीवन साथी था जो कि इनके व्यवसाय कृषि कार्य और हर चीज में सहायता करता था यहां तक कि दूसरे के खेतों की जुताई भी फ्री में करते थे इसलिए इनको लोग ज्यादा मानते थे लोग इनसे मिलने आते थे लोग इनसे राय लेने आते थे।
और तो और मैं जिन दिनों की बात बता रहा हूं उस दिन मैं काफी छोटा था मैं कक्षा 6 में था ,मेरी कुछ याददाश्त उसी समय की है जब फिर से कोई काम आता था वह अपनी टीम को लेकर विद्युत कार्य हेतु निकलते थे लोग उनको छोड़ने आते थे पूरे गांव के लोग जुट जाते थे और यह विशेष बात मैं आपको बता रहा हूं, बात वैसे 2003 की होगी उस समय वह जो भी बच्चे बुजुर्ग भाई बेटे लगते सबको पैसा बांटते थे मुझे याद मुझे भी ₹10 दिए थे कुछ खर्चा पानी करने के लिए , सारे बच्चे झुण्ड में उनके पीछे लग जाते थे जब तक वह गाड़ी में बैठते तब तक उनके पीछे पीछे चलते, इन सब चीजों के चलते उनका बच्चों बूढ़ों नौजवानों के साथ अलग ही लगाव था
यह तो रही उनके बारे की कुछ पुरानी बातें जो मैं आप लोगों के बीच रखा , मैं इंटरमीडिएट के बाद से पढ़ाई को लेकर ज्यादातर घर से बाहर ही रहा हूं, यहीं कहीं 2010 - 11 में उन्होंने यह महसूस किया कि उनके आसपास के गांव के जो भी महिलाएं हैं बच्चियां हैं उच्चतर शिक्षा नहीं प्राप्त कर पातीं हैं क्योंकि वहां आसपास कोई डिग्री कॉलेज नहीं था तो उन्होंने 1 डिग्री कॉलेज बनाने की ठान ली विशेषकर बालिकाओं के लिए, उन्होंने यह बात अपने भाइयों से गांव वालों से कही कि हमें एक कॉलेज बालिकाओं के लिए बनाना होगा अन्यथा इनको उच्चतर शिक्षा नहीं मिल पाएगी, वह आगे नहीं बढ़ पाएंगी स्वावलंबी नहीं बन पाएंगी तो गांव वालों ने इनके सुझाव व् विचार का स्वागत किया , उन्होंने कहा कि अब हम क्या करें नाना जी ने कहा कि इसके लिए हमें जमीन चाहिए होगी, हालांकि जमीन हम लोगों के पास है लेकिन किसी एक विशेष आदमी की एक जगह नहीं है लेकिन स्कूल खोलने के लिए तकरीबन 1 एकड़ जमीन चाहिए होगी तो पूरे गांव वालों ने बिना किसी शर्त जमीन देने को तैयार हो गए हैं आप कल्पना करिए एक आदमी के कहने पर लोग अपनी जमीन देने के लिए तैयार हो गए , उनकी लोकप्रियता कितनी थी इसका तकाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।
जिन लोगों ने जमीन दी थी उनको नाना जी ने उचित दाम दे दिया या उनको दूसरी जगह अपनी जमीनें दी। और इस प्रकार बालिका महाविद्यालय की नीव पड़ी और गांव वालों की सहमति के अनुसार उस बालिका महाविद्यालय का नाम उन्हीं के नाम पर रख दिया गया जिसका नाम इंद्रजीत महिला महाविद्यालय है जिस में पठन-पाठन का कार्य शुरू हुआ , प्रथम वर्ष विज्ञान वर्ग व् कला वर्ग की तकरीबन 340 बालिकाओं का दाखिला हुआ 3 साल बाद से,1000 से ज्यादा बालिकाएं उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।।
हालांकि वह अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके थे लेकिन अपने पेंशन का पैसा वह कॉलेज की फंड में डाल देते ताकि कुछ बच्चों की आर्थिक स्थिति अगर अच्छी ना हो तो उनकी भी पढ़ाई चल सके। आज उस पिछड़े इलाके से भी लोग उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर स्वावलंबी बन रही हैं।।
मैं अब बात 2016 की कर रहा हूं, जबकि नानाजी मेरे पास दिल्ली आए हुए थे उस समय वह काफी स्वास्थ्य थे जिधर चाहते वह अपनी टीम लेकर विद्युत कार्य हेतु निकल जाते थे खंबे की तारों की मरम्मत हो या कोई और काम हो । जब मेरे पास आए थे तो मुझे थोड़ा बहुत स्वास्थ्य की समस्याएं आना शुरू हो गई थी , वो आए थे जहाज से, यह शायद उनका पहला तजुर्बा था जहाज में बैठने का , तो मेरे पास आने के बाद काफी खुश थे उनको मैंने दिल्ली में लोटस टेंपल हुआ, लाल किला हुआ ,अक्षरधाम हुआ ऐसे जगह पर घुमाया मुझे भी सुकून मिलता था उनको भी आनंद आता था हालांकि उनको विदा करना मुझे जरूरी था क्योंकि उनको वापस आजमगढ़ आना था और अपनी टीम के साथ लग जाना था ।
उसके बाद से मेरा उनसे ज्यादा मिलना जुलना नहीं हुआ, लेकिन जब भी मैं आजमगढ़ जाता वह मुझे देखकर काफी खुश होते, खूब सारी बातें करते , हालांकि वह बहुत दिनों से बीमार चलते थे लेकिन देख कर मुझे मुस्कराते कुछ मैं खिलाता तो खाते, कुछ बातें करते मैं उनके हाथ पैर दबाने का मौका नहीं छोड़ता, ऐसे ही तकरीबन चलता रहा मुझे याद है कि उनको एक बार हृदय गति की कुछ परेशानी हुई थी जिसके बाद उनका स्वास्थ्य काफी गिरने लगा काफी दुबले हो गए और अभी होली पर जब मैं गया था तो उनसे आखिरी बार मिला था तो काफी अच्छे से बोल नहीं पाते थे लेकिन वह उस दिन उठे मुझसे बातें की कुछ खाया पिया , मैं हाथ पैर दबाने की कोशिस किया बूत सायद कमजोरी की वजह से दबाना उचित नहीं था सो नहीं दबाया , यही कुछ अंतिम क्षण थे जो मैं उनसे मिल पाया ! उसके बाद मैं यहां बैंगलोर चला आया और कोरोना जैसी महामारी के चलते लाक डाउन में फास गया , इच्छा तो थी घर जाने की लेकिन अभी न जा सका !
नाना जी के वर्तमान वंशज में मामा श्री चंद्रशेखर यादव (पूर्व ब्लॉक प्रमुख हरैया ), सुनील यादव ( सोनू) व् अरविन्द कुमार यादव, कृषि कार्य के अतिरिक्त विविध प्रकार की सामाजिक राजनीति सेवाओं में संलग्न हैं । नाना जी की ४ पुत्रियां भी हैं , जिनमे मेरी माँ श्रीमती विद्या देवी जी सबसे बड़ी हैं !
उम्मीद करता हूँ की सभी मामा जी लोग नाना की विचारधारा एवं समाज सेवा की जन कल्याणकारी प्रथा को जारी रखेंगे।
जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा,
वैसे वैसे जख्म भरते जाएंगे।
मगर उनके साथ बिताए हुए,
कुछ लम्हे हमेशा याद आएंगे ।।
- © संतोष कुमार यादव (01-05-2020, 9:10 pm)
मैं आप लोगों के बीच अपने नाना स्वर्गीय इंद्रजीत यादव (देहावसान 19-04-2020 💔💔💔) के 13 वीं के दिन उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं 🙏🙏🙏, उनके साथ शेयर किए हुए कुछ लम्हों के अनुभव को आप लोगों के बीच समर्पित करता हूं मेरा उनसे कैसा रिश्ता रहा, उनसे मेरा कैसा लगाव रहा, लोगों का उनके प्रति लगाव कैसा रहा, वह एक आम किसान के बेटे होते हुए कैसी 1 से ज्यादा लोगों के लिए रोजगार के अवसर अवसर पैदा किए ? कैसे वह किसान के बेटे से लेकर अपर मिडल क्लास फैमिली तक का सफर तय किए मैं अपने अनुभव को आप लोगों के बीच शेयर कर रहा हूं। आशा करता हू कोई त्रुटि हो जाये तो आप छमा कर देंगे!
मूलतः उनका जन्म आजमगढ़ जनपद के, सगड़ी तहसील के, रौनापार थाना क्षेत्र के देवरांचल में " माँ सरयू के पावन तट पर " आराजी देवारा नैनीजोर ( पकडिहवा ) नाम के एक गाँव में ढक्कू नामक विख्यात यदुवंशी के घर हुआ था । नाना जी के पिताजी एक बहन समेत कुल 8 भाई बहन थे। नाना जी खुद चार भाई जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं - श्री जीत्तन यादव, श्री नारसिंह यादव, स्व० श्री इंद्रजीत यादव और स्व० श्री झीनक यादव
जिनमें से श्री जीत्तन यादव और स्व0 इंद्रजीत यादव पेशे से लाइनमैन थे जो कहीं भी बिजली आपूर्ति बाधा आने पर त्वरित कार्रवाई कर सुदृढ़ बनाने का काम करते थे हालांकि अब यह लोग सेवानिवृत्त हो चुके थे, श्री नरसिंह यादव आजीवन कृषि कार्य में कार्यरत हैं।।
आइए विशेषकर श्री इंद्रजीत यादव के बारे में बात करते हैं जो कि समाज सेवा में काफी रूचि रखते थे जहां तक मुझे याद है बचपन में वह बिजली से सम्बंधित काम के लिए अपने टीम का गठन किए थे जिसमें वह अपने गांव के आसपास के लोगों को साथ लेकर कहीं भी ट्रांसमिशन लाइन हो उसके मरम्मत व विद्युत आपूर्ति से रिलेटेड कार्य के लिए जुट जाते थे
चाहे दिन हो रात हो जैसे ही सरकारी अफसरों से कोई आदेश आता ये अपने यहां से तुरंत अपनी टीम लेकर चले जाते थे हालांकि शुरुआत में उनकी टीम छोटी थी लेकिन उनके कार्य कुशलता और नॉलेज के हिसाब से उनको इलाहाबाद, सोनभद्र, आजमगढ़ आदि मंडल में इनके कार्य की निपुणता को देखते हुए बिजली विभाग के ऑफिसर इनको को ही प्रमुखता देते थे कोई भी काम हो वह इनको ही कॉल करके कहते थे कि यहां विद्युत आपूर्ति ठप है, यहां पर काम करना होगा, यहां पर नये विद्युतीकरण के लिए नए काम करना होगा, जैसे-जैसे इनकी टीम की डिमांड बढ़ती गई वैसे वैसे टीम की संख्या भी बढ़ती गई उनकी टीम में ना तो कोई जातिवाद था ना तो कोई संप्रदायवाद था इनके टीम में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध हर धर्म के लोग काम करते थे।।
उनकी टीम की विशेषता यह थी सभी लोग जहां भी काम करने जाते थे वही जाकर खाना बनाते एक दूसरे में मिलजुलकर खाते एक दूसरे के साथ मनोरंजन करते चाहे दिन हो या रात हो काम पर लग जाते और काम को त्वरित सुदृढ़ कर देते जिससे कि बिजली आपूर्ति शुरू हो सके या पहली बार किसी गांव तक किसी कॉलोनी तक विद्युतीकरण हो सके।
मुझे याद है बचपन में जब कभी हम लोग गर्मी की छुट्टियों में नाना के यहां जाते थे और जब कभी काम से फुर्सत पार कर नाना अपनी टीम लेकर ग्राम पकड़ीहवा आते थे, पूरा गांव एकत्रित हो जाता कि नाना जी कुछ लेकर आए होंगे सबके लिए, हां वह भी लोगों को मायूस नहीं करते थे वह केवल अपने घर के लिए ही नहीं पूरे गांव के लिए भी खाने पीने का सामान लेकर आते जैसे कि फल हो, मिठाई हो और गांव में जबरदस्त चौपाल लगाती थी लोग काफी आनंदित होते थे, बच्चे हो, बूढ़े हो उनके साथ के हों, उनकी टीम के मेंबर हो सब खुश होते थे,
वैसे तो बिजली विभाग काम से छुटकारा पाकर गांव आते थे लेकिन गांव आकर वह आराम नहीं करते थे किसी न किसी काम में लग जाते थे चाहे वह गांव का खुद का विद्युतीकरण हो चाहे, गांव में सड़के बनानी हो, चाहे किसी की छप्पर छानी हो, खेती करनी हो अपने खेतों की जुताई के साथ-साथ दूसरे के खेतों में जुताई करनी हों इन सब कामों में काफी दिलचस्पी लेते थे,
जिससे उनकी लोकप्रियता उनके आसपास के गांव तक थी, दूसरे गांव तक के लोग इनसे सहायता के लिए आते थे और गांव में एक अलग खुशी का माहौल होता था सबकी रुकी खेती जुदाई बुवाई हो जाती थी, इनके चंद दिनों गांव में होने के दौरान ही चाहे वह गन्ने की खेती हो चाहे वह गेहूं की खेती और धान की खेती हो सब की बुवाई तथा कटाई समय से हो जाया करती थी क्योंकि इन्हीं के पास कृषि कार्य हेतु इनके गांव में ट्रैक्टर था, ट्रैक्टर सामान्यतया विद्युत कार्यों के लिए उपयोग करते थे, शुरुआत में ट्रैक्टर ही इनका जीवन साथी था जो कि इनके व्यवसाय कृषि कार्य और हर चीज में सहायता करता था यहां तक कि दूसरे के खेतों की जुताई भी फ्री में करते थे इसलिए इनको लोग ज्यादा मानते थे लोग इनसे मिलने आते थे लोग इनसे राय लेने आते थे।
और तो और मैं जिन दिनों की बात बता रहा हूं उस दिन मैं काफी छोटा था मैं कक्षा 6 में था ,मेरी कुछ याददाश्त उसी समय की है जब फिर से कोई काम आता था वह अपनी टीम को लेकर विद्युत कार्य हेतु निकलते थे लोग उनको छोड़ने आते थे पूरे गांव के लोग जुट जाते थे और यह विशेष बात मैं आपको बता रहा हूं, बात वैसे 2003 की होगी उस समय वह जो भी बच्चे बुजुर्ग भाई बेटे लगते सबको पैसा बांटते थे मुझे याद मुझे भी ₹10 दिए थे कुछ खर्चा पानी करने के लिए , सारे बच्चे झुण्ड में उनके पीछे लग जाते थे जब तक वह गाड़ी में बैठते तब तक उनके पीछे पीछे चलते, इन सब चीजों के चलते उनका बच्चों बूढ़ों नौजवानों के साथ अलग ही लगाव था
यह तो रही उनके बारे की कुछ पुरानी बातें जो मैं आप लोगों के बीच रखा , मैं इंटरमीडिएट के बाद से पढ़ाई को लेकर ज्यादातर घर से बाहर ही रहा हूं, यहीं कहीं 2010 - 11 में उन्होंने यह महसूस किया कि उनके आसपास के गांव के जो भी महिलाएं हैं बच्चियां हैं उच्चतर शिक्षा नहीं प्राप्त कर पातीं हैं क्योंकि वहां आसपास कोई डिग्री कॉलेज नहीं था तो उन्होंने 1 डिग्री कॉलेज बनाने की ठान ली विशेषकर बालिकाओं के लिए, उन्होंने यह बात अपने भाइयों से गांव वालों से कही कि हमें एक कॉलेज बालिकाओं के लिए बनाना होगा अन्यथा इनको उच्चतर शिक्षा नहीं मिल पाएगी, वह आगे नहीं बढ़ पाएंगी स्वावलंबी नहीं बन पाएंगी तो गांव वालों ने इनके सुझाव व् विचार का स्वागत किया , उन्होंने कहा कि अब हम क्या करें नाना जी ने कहा कि इसके लिए हमें जमीन चाहिए होगी, हालांकि जमीन हम लोगों के पास है लेकिन किसी एक विशेष आदमी की एक जगह नहीं है लेकिन स्कूल खोलने के लिए तकरीबन 1 एकड़ जमीन चाहिए होगी तो पूरे गांव वालों ने बिना किसी शर्त जमीन देने को तैयार हो गए हैं आप कल्पना करिए एक आदमी के कहने पर लोग अपनी जमीन देने के लिए तैयार हो गए , उनकी लोकप्रियता कितनी थी इसका तकाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।
जिन लोगों ने जमीन दी थी उनको नाना जी ने उचित दाम दे दिया या उनको दूसरी जगह अपनी जमीनें दी। और इस प्रकार बालिका महाविद्यालय की नीव पड़ी और गांव वालों की सहमति के अनुसार उस बालिका महाविद्यालय का नाम उन्हीं के नाम पर रख दिया गया जिसका नाम इंद्रजीत महिला महाविद्यालय है जिस में पठन-पाठन का कार्य शुरू हुआ , प्रथम वर्ष विज्ञान वर्ग व् कला वर्ग की तकरीबन 340 बालिकाओं का दाखिला हुआ 3 साल बाद से,1000 से ज्यादा बालिकाएं उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।।
हालांकि वह अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके थे लेकिन अपने पेंशन का पैसा वह कॉलेज की फंड में डाल देते ताकि कुछ बच्चों की आर्थिक स्थिति अगर अच्छी ना हो तो उनकी भी पढ़ाई चल सके। आज उस पिछड़े इलाके से भी लोग उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर स्वावलंबी बन रही हैं।।
मैं अब बात 2016 की कर रहा हूं, जबकि नानाजी मेरे पास दिल्ली आए हुए थे उस समय वह काफी स्वास्थ्य थे जिधर चाहते वह अपनी टीम लेकर विद्युत कार्य हेतु निकल जाते थे खंबे की तारों की मरम्मत हो या कोई और काम हो । जब मेरे पास आए थे तो मुझे थोड़ा बहुत स्वास्थ्य की समस्याएं आना शुरू हो गई थी , वो आए थे जहाज से, यह शायद उनका पहला तजुर्बा था जहाज में बैठने का , तो मेरे पास आने के बाद काफी खुश थे उनको मैंने दिल्ली में लोटस टेंपल हुआ, लाल किला हुआ ,अक्षरधाम हुआ ऐसे जगह पर घुमाया मुझे भी सुकून मिलता था उनको भी आनंद आता था हालांकि उनको विदा करना मुझे जरूरी था क्योंकि उनको वापस आजमगढ़ आना था और अपनी टीम के साथ लग जाना था ।
उसके बाद से मेरा उनसे ज्यादा मिलना जुलना नहीं हुआ, लेकिन जब भी मैं आजमगढ़ जाता वह मुझे देखकर काफी खुश होते, खूब सारी बातें करते , हालांकि वह बहुत दिनों से बीमार चलते थे लेकिन देख कर मुझे मुस्कराते कुछ मैं खिलाता तो खाते, कुछ बातें करते मैं उनके हाथ पैर दबाने का मौका नहीं छोड़ता, ऐसे ही तकरीबन चलता रहा मुझे याद है कि उनको एक बार हृदय गति की कुछ परेशानी हुई थी जिसके बाद उनका स्वास्थ्य काफी गिरने लगा काफी दुबले हो गए और अभी होली पर जब मैं गया था तो उनसे आखिरी बार मिला था तो काफी अच्छे से बोल नहीं पाते थे लेकिन वह उस दिन उठे मुझसे बातें की कुछ खाया पिया , मैं हाथ पैर दबाने की कोशिस किया बूत सायद कमजोरी की वजह से दबाना उचित नहीं था सो नहीं दबाया , यही कुछ अंतिम क्षण थे जो मैं उनसे मिल पाया ! उसके बाद मैं यहां बैंगलोर चला आया और कोरोना जैसी महामारी के चलते लाक डाउन में फास गया , इच्छा तो थी घर जाने की लेकिन अभी न जा सका !
नाना जी के वर्तमान वंशज में मामा श्री चंद्रशेखर यादव (पूर्व ब्लॉक प्रमुख हरैया ), सुनील यादव ( सोनू) व् अरविन्द कुमार यादव, कृषि कार्य के अतिरिक्त विविध प्रकार की सामाजिक राजनीति सेवाओं में संलग्न हैं । नाना जी की ४ पुत्रियां भी हैं , जिनमे मेरी माँ श्रीमती विद्या देवी जी सबसे बड़ी हैं !
उम्मीद करता हूँ की सभी मामा जी लोग नाना की विचारधारा एवं समाज सेवा की जन कल्याणकारी प्रथा को जारी रखेंगे।
जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा,
वैसे वैसे जख्म भरते जाएंगे।
मगर उनके साथ बिताए हुए,
कुछ लम्हे हमेशा याद आएंगे ।।
- © संतोष कुमार यादव (01-05-2020, 9:10 pm)
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