व्यंग्य-अच्छे दिन का नया स्वरुप|
इस
पोस्ट में व्यक्तिगत अनुभव को व्यक्त किया गया है इसका किसी पार्टी या समुदाय से
कोई लेना देना नहीं है अगर ऐसा पाया जाता है तो इसे मात्रा एक संयोग कहा
जायेगा, इस लेख का उद्देश्य किसी के विचारो को ठेस पहुंचाने या भावनाओ को आहत करने
का नहीं है ....|
धरना करना मतलब काम करना
: 21 वीं सदी के प्रथम दसक
तक ऐसा था की अगर सरकारे काम करती थी तो धरना बंद / अगर धरना करती थी तो काम बंद
...आज दिल्ली की राजनैतिक परिवेश में इसका उलट ही नज़ारा है : सरकार LG ऑफिस में
धरना दे रही और विपक्षी दल CM ऑफिस में धरना दे रहे दोनों ये कह रहे की हम अपना
काम कर रहे . ये कहा तक सही है ये भविष्य के गर्त में छिपा है |
महंगी शिक्षा महना तेल
देख रहे नेता का खेल : बड़े
बड़े होर्डिंग एंड बैनरो की मने तो देश आर्थिक स्थिति और डेवलपमेंट में बड़ी तेजी से
आगे बढ़ रहा है परन्तु मेरे लिए ये सब बातें 4 साल सरकार के कर्यकाल के बाद जुमला
ही लगती है ,, महंगाई चरम सीमा पे है चाहे आप डीजल पेट्रोल या सरसो के तेल का उदरण
ले लो , या किसी भी वस्तु का उदहारण ले जो सामान्य जन जीवन के लिए बेसिक जरूरत है
उनके दामों को देख लीजिये . सब दिन ब दिन महंगा ही हुआ है ,, किसी भी
क्षेत्र में, शिक्षा के लिए खर्च चाहे डायरेक्ट या इंडायरेक्ट ज्यादा ही हुआ
है .
पीने योग्य पानी की समस्या : तक़रीबन आज़ादी के लगभग 70 साल के बाद भी आज
ग्रामीण इलाको के 7% से ज्यादा लोग पीने योग्य पीने का पानी नहीं पा रहे ...किसी
के मुँह से मैंने सुना था की अगला विश्व युद्ध पिने के पानी को लेकर होने वाला है
, स्थिति कुछ हद तक सही ही नज़र आ रही है ,, पानी की 1 लीटर की बोतले 20 Rs हो चुकी
है ,, जिनको खाने के लिए ठीक से भोजन नहीं मिल रहा उन्हें शुद्ध पिने के पानी की
कल्पना केवल कल्पना मात्र है .
केंद्र शासित राज्य की
विडंबना:जनता द्वारा चुनी सरकार
को संवैधानिक और राजनैतिक बहिष्कार या चुनी सरकार को प्रभावित कर देना जिससे कि
राज्य सरकार कोई डिसीजन या बिल जो असेंबली में सर्वसम्मति से पास हुआ हो राज्य में
लागू ना करवा पाये |
आम जनता और उसका राजनीतिक
भविष्य: भारत में आज़ादी के दौर
से बहुत सी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हैं चाहे वो राष्ट्रीय स्तर की हो, चाहे
राज्य स्तर की हो, चाहे क्षेत्र स्तर की हो, यह सब या तो जाति या तो संप्रदाय या
वंशवाद या क्षेत्र के आधार पर हैं इन सब में मुख्यतः कांग्रेस या BJP ऐसी पार्टी
है जो राष्ट्र की राजनीति में अब तक स्थापित पार्टी और AAP एक ऐसी पार्टी हैं जो
अन्ना के लोकपाल के लिए हुए जन आंदोलन की उपज है|
बात कांग्रेस की: कांग्रेस पार्टी में भी आम जनता के लिए राजनीति
शुरू करना या इसके बारे में सोचना कल्पना मात्र है |क्योंकि कांग्रेस भी अपने पहले
से जाने माने एवं स्थापित चेहरों को या सदस्यों को महत्ता देना चाहती है ऐसे में
आम जनता के लिए कांग्रेस में रास्ता आसान नहीं है|
बात
BJP की: इसी तरह BJP जो कि संघ के
विचारों और राम मंदिर मुद्दों से प्रभावित या यूं कह लें की इसी के दम पर बनी है
BJP भी, राजनीति में संघ के लोगों को तवज्जो देने की फिराक में ऐसे में आम आदमी के
लिए इस पार्टी में रास्ते बंद है |
अब बात करते हैं आम आदमी पार्टी AAP की: आप एक ऐसी पार्टी जो अन्ना के लोकपाल के लिए जन
आंदोलन की उपज है उस जन आंदोलन के समय आम आदमी या यूं कह लें जनमानस को एक आस और
उम्मीद जगी की एक नया विकल्प राजनीति में सक्रिय होने वाली है और अपनी बात रखने का
मौका मिलेगा।
AAP का उदय हुआ और मध्यम
वर्ग के लोगों ने डोनेशन दिया चाहे देश में रहने वाले या विदेश में रहने वाले हो
उस दौर में राजनैतिक बदलाव को देख सभी लोगों ने आशा और उम्मीद के साथ AAP को
सपोर्ट किया| पिछले कुछ सालों से AAP की मीडिया ने चाहे जितनी भी खिंचाई की हो या
थू-थू की हो, इसके बजाय जनमानस का यूं कह लें निचले तबके के लोगों का AAP को भरपूर
समर्थन मिला है और AAP ने अपने वादों के मुताबिक कुछ बेहतर काम भी किए हैं चाहे वह
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो चाहे बेसिक शिक्षा/पढ़ाई में बदलाव हो,,,AAP का
शासनकाल कठिनाइयों भरा भी रहा है जैसे कि दिल्ली एक केंद्र शासित राज्य हैं राज्य
सरकार कुछ भी बिना LG की अनुमति के बिना नहीं कर सकती,, और हम सब बखूबी परिचित हैं
की AAP और LG का संबंध
शुरुआत से ही चूहे- बिल्ली का या यूं कह लें सांप - नेवले का संबंध रहा है |
पंजाब असेंबली इलेक्शन से
पूर्व AAP को भारी समर्थन मिलता दिख रहा था किंतु चुनाव के परिणाम उम्मीद भरे नहीं
रहे वजह यह रही कि AAP संगठन का निचले तबके के या कार्यकर्ताओं के बीच संबंध ऐसा
नहीं रहा जैसा होना चाहिए | AAP निचले तबके के लोगों का दिल जीतने में असफल रही /
राज्यसभा की सीटों के लिए
उम्मीदवार के चयन ने जनमानस की उम्मीदों को तोड़ के रख दिया जिस तरह से बाहर से आए
लोगों को राज्यसभा भेजा गया यह गलत था इसके बजाय AAP संगठन को आपके ही लोगों को या
जो अन्नाआंदोलन में सक्रिय थे और पार्टी कार्यकर्ता हैं उन्हें भेजना चाहिए था
जनमानस की उम्मीद चकनाचूर हो गई अगर AAP को 2019 इलेक्शन में एक अच्छे विकल्प के
रुप में स्थापित करना है तो पार्टी के अंदर स्ट्रक्चरल बदलाव और जनमानस से जनमत
संग्रह की तरह बातचीत करने को तवज्जो देना चाहिए आम आदमी पार्टी मैं आम आदमी की
भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए जिससे 2019 के चुनाव में अमूल चूक सफलता मिल सके |
राजनैतिकपार्टियां और उनको
मिलने वाले चंदे: इस मुद्दे के बारे में
ज्यादा चर्चा तब हुई जब आम आदमी पार्टी ‘AAP‘ का गठन हुआ | खूब सारा चंदा ऑनलाइन
या ऑफलाइन तरीके से इकट्ठा हुआ और एक राजनैतिक बदलाव जनमानस के चंदे से स्थापित
हुआ था वैसे हर पार्टी चाहे बीजेपी या कांग्रेस या सपा या बसपा या अन्य पार्टियां
अपने पार्टी को चलाने के लिए डायरेक्ट/ इनडायरेक्ट अलग अलग क्षेत्रों से जैसे कि
कारपोरेट चैरिटी Firm इत्यादि से चंदा इकट्ठा करते हैं किसी पार्टी को चंदा ज्यादा
और किसी को कम मिलता है|
एक प्रश्न मेरे ज़हन में
यह आ रहा है कि जब कोई पार्टी सत्ता में नहीं होती है तो उसको चंदे कम और जब सत्ता
में होती है तो चंद्र 250 गुना कैसे हो जाता है यह एक खुला प्रश्न है मैं इसके
उत्तर की फिराक में हूं अगर आपके पास इसका जवाब हो तो जरुर बताएं शेयर करें या
कमेंट बॉक्स में कमेंट करें??
दिनांक 8 नवंबर 2016
अमेरिकन राष्ट्रपति का चुनाव और भारत में नोटबंदी की उद्घोषणा: आज मैं आपको एक बहुत ही मार के की बात बताना चाहता
हूं की 8 नवंबर 2016 विश्व इतिहास में एक ऐसा दिन है जिस दिन अमेरिका में
राष्ट्रपति को काले से गोरा करने का ड्रामा चल रहा था तो भारत में पैसा ब्लैक से
वाइट करने का ड्रामा शुरू हुआ जी हां इंडिया में नोटबंदी की उद्घोषणा हमारे मोदी
जी ने कर दिया और 8 दिसंबर 2016 तक केवल 30 दिन के अंतराल में सब लोगों की मृत्यु
हुई वजह थी नोटबंदी |
"Source
Forbse : India's Demonetisation Kills 100 People Apparently - This Is Not An
Important Number" Link: उसी दौरान कुछ ऐसी चीजें हुई जो एक व्यंग मात्र
हैं जैसे कि: मोदी जी ने बताया था की अच्छे दिन आएंगे, और यह भी कहा था की सभी के
खाते में 1500000 रुपए आएंगे परंतु यह कभी नहीं बताया की लोग अपने पैसे बैंक मैं
जमा करने के लिए लाइन में लगेंगे डंडे की मार धक्का-मुक्की सहेंगे………. आपको बताया
था क्या? नहीं ना किसी को नहीं बताया था भाई |
मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं 1 महीने के अंतराल में तकरीबन 100 लोग
मरे परंतु प्राइम टाइम डिबेट में बीजेपी कार्यकर्ता या प्रवक्ता यह कहते फिर रहे
थे कि नोटबंदी के दौरान होने वाली मृत्यु संख्या इंडिया में 1 महीने के अंदर होने
वाली मृत्यु संख्या के सापेक्ष 0.01 प्रतिशत ही है,, मुझे ऐसे लोगों पर शर्म आती
है क्यों यह तर्क कैसे दे सकते हैं|
और तो और किसी ने बोला कुछ अंडे फूटेंगे तभी आमलेट बनेगा, चलो मैं मान
लिया कुछ देर के लिए बिना अंडा फुटे आमलेट नहीं बनता ,,, मगर मैं यह भी
पूछना चाहता हूं आमलेट है,, किधर अच्छे दिन है किधर,, यह सच्चा वादा था या एक
जुमला था.
कुछ प्रवक्ता यह भी कहते फिर रहे थे कि यह हमारे देश के पुनर्गठन
(restructuring ) के लिए जरूरी है मैं पूछता हूं सबसे की स्टालिन और माओ ने भी
अपने देश में पुनर्गठन किया था बिना किसी ट्रेजेडी या मृत्यु के, और बिना अंडा
फोड़े ही आमलेट खिलाया था अपने देशवासियों को……यह पुनर्गठन की बातें BJP वालों का राजनैतिक तेवर था (political
posturing) बजाय किसी मजबूत आर्थिक बिंदु के वह अपनी बातें अनर्गल बातें प्रसारित
कर रहे थे|
यह आपको निर्दई स्टेटमेंट
लग सकता है बट मैं तो कहता हूं कि यह संभावित खूनी फैसला था नोटबंदी ||
राज्यसभा में विपक्ष यह
भी कहता रहा कि यह शर्म की बात है कि गवर्नमेंट ने सरकार ने नोटबंदी से मरने वाले
लोगों को श्रद्धांजलि देने से भी मना कर रही है " We have been saying for a
long time that over 100 people have died because of demonetisation," said
Ghulam Nabi Azad in Rajya Sabha. "But the government refused to pay
tribute to the deceased," Ghulam Nabi Azad added.
मुझे ऐसा लगता है
नोटबंदी से पहले सरकार को जनमत संग्रह (Referndum) जरूर करा लेना चाहिए था बजाए
नोटबंदी के निर्णय से पहले ||
वैसे ही मेरे पास शब्दों
का अंबार है आप लोगों के साथ शेयर करने के लिए लेकिन मैं इस पोस्ट को उबाऊ या बड़ा
कतई नहीं बनाना चाहता…….. उम्मीद करता हूं कि मेरा यह पर्सनल “उद्धरण :अच्छे दिन
का नया स्वरूप”,, आशा करता हूं आप सभी को सच लगा होगा... अगर आप इस उद्धरण से सहमत
हैं तो इसे और भी लोगों के साथ शेयर करें जिससे कि वह भी इस बात को जान सकें ||
Please
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